राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एन.एम.एच.एस)
क्रियांन्वयन- पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार
नोडल एवं सेवा केन्द्र- जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान

वृहद विषयगत क्षेत्र- 6 भौतिक संयोजकता



भारत हिमालयी क्षेत्र में भौतिक संयोजकता का महत्व

सुगम यातायात तंत्र युक्त आधारभूत ढांचे के बिना किसी भी देश के विकास संभव नहीं है। पर्वतीय भागों में एकमात्र सड़क यातायात ही आवागमन का माध्यम है। मौसम, भौगोलिक परिस्थितियों व जटिल स्थलों की आकृति व उनकी कमजोर स्थितियों के कारण पहाड़ों में सड़कों को बनाना व उनका रखरखाव अत्यंत जटिल हो जाता है। अब तक बनी सड़कें भू-कटाव, वनों के खत्म होने, ढलानों की कमजोरी, वायु प्रदूषण व जैवविविधता नाशक आदि के कारण साबित हुई है। मैदानों की तुलना में इस भू-भागों में कम जनसंख्या और बुनियादी सेवाओं की कमी व कमजोर होना भी देखा जाता है। इस कारण हिमालयी क्षेत्र में स्थायी, सक्षम सड़कों के तंत्र को विकसित करने की नितांत आवश्यकता है। जो यहां के संपूर्ण विकास के साथ देश की सुरक्षा की जरूरतों को भी पूरा करे। वर्तमान में इन समस्याओं के निवारण हेतु विशेष तकनीकों जैसे ‘सुरक्षित एवं हरित सड़कों का उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार की तकनीकें में सड़कें अधिक कार्यकुशलता, उपलब्ध वनस्पति को कम हानि पहुंचाने वाली और खुदाई की सामग्री को ही उपयोग के सिद्धांत पर आधारित होती है। सड़कों के ढलानों को स्थिर करने, भू-क्षरण को कम करने, गैर कृषि रोजगार अवसरों को बढ़ाने व यातायात खर्चों को कम करने जैसे अन्य लाभ भी इन सड़कों के होते है। इस दिशा में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत दो परियोजनाएं संचालित हैं। जिनका उद्देश्य है पर्वतीय क्षेत्रों में वैकल्पिक यातायात संयोजन तंत्र को सामने लाया जाए।

आच्छादित भारतीय हिमालयी राज्य -०३: (उत्तराखण्ड, मेघालय, असम)

प्रमुख उद्देश्य

भू-सिथेटिक्स (नवीन तकनीक) के माध्यम से प्रदर्शन बढ़ाने के लिए स्थानीय उपलब्ध सामग्री को चिन्हित करना और उसे प्रोत्साहित करना।
स्थानीय उपलब्ध सामग्री का उपयोग कर उच्च क्षेत्रों में सुगम पथ मार्गों का विकास।
सड़क नेटवर्क, जनसांख्यिकी वितरण के साथ बसासतों का व्यौरा व त्रिपुरा राज्य में दुर्घटनओं का जीआईएस आधारित डेटाबेस बनाना।
स्थानीय निवासियों की जरूरतों के अनुरूप सुरक्षित सड़कों के द्वारा प्रमुख बस्तियों में वांछित विभिन्न सुविधाओं तक पहुंचने के लिए आसानी का आॅकलन के लिए के लिए विभिन्न सूचकांकों का विकास करना।

संचालित परियोजनाएं: २ (मध्यम अनुदान-०१ एवं लघु अनुदान-०१ )

वित्तीय वर्ष २०१७-१८
1 उच्च क्षेत्रों में भू-रसायन संश्लेषित सतत् सड़क फुटपाथों का निर्माण
2 भारत के उत्तर-पूर्व में त्रिपुरा राज्य में सुरक्षित सड़क संयोजकता

२०२० तक मापकीय लक्ष्य

न्यूनतम दो हिमालयी राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत सुरक्षित सड़क तंत्र का विकास


संपूर्ण निगरानी सूचक

दिशानिर्देशों की संख्या/सतत् सड़क निर्माण के आदर्श तरीके/हिमालयों में फुटपाथ
प्रदर्शित प्रारंभिक मानकीय प्रारूपों की संख्या/ रणनीतिक रूपरेखा
स्थानीय उपलब्ध/सीमांत सामग्री का आवधिक अद्यतन एवं उच्च क्षेत्रीय पैदलपथों में जियो-सिंथेटिक्स में उसका उपयोग।
निश्चित समयांतराल में आधारभूत सर्वेक्षणों की संख्या एवं भौगोलिक सूचना तंत्र आधारित आॅकड़ा संग्रहण अर्थात, सड़क तंत्र, भौगौलिक संरचना, घरों की सर्वे सूचना,
सड़क तंत्र पर समीक्षा रिपोर्टों की संख्या, जिलेवार बसासतों का श्रेणीकरण
नीतिपत्रों की संख्या एवं अन्य ज्ञान आधारित उत्पादों का विकास
प्रदेय

उच्च भागों में जीयो-सिथेटिक्स पद्धति से सड़क निर्माण के नए दिशा निर्देश
एक प्रारंम्भिक प्रदर्शन मानकीय प्रारूप (प्रायोगिक मार्ग) की स्थापना
उच्च हिमालयी भागों में सस्ती और सुगम फुटपाथ निर्माण की नई आकृतियां का विकास
त्रिपुरा राज्य में आच्छादित सड़कों, उनकी बसासत, भौगोलिक व्यौरों और सूचनाओं का भौगोलिक सूचना तंत्र आधारित आॅकड़ों की उपलब्धता
त्रिपुरा राज्य हेतु सुरक्षित यातायात संयोजन हेतु प्राथमिकता सूची
वर्तमान सड़क संयोजन स्तर के आंकलन हेतु विभिन्न बसासतों के सूचीकरण के लिए व्यवस्थित पद्धति एवं नियमों का निर्माण
ज्ञान उत्पादों की विकास-श्शोध पत्र -5, पुस्तक अध्याय-2, रिपोर्ट अथवा नियमावली 2 आदि ।
उपलब्धियां आज तक...

Sustainable Road Pavement Model in High altitude-Himachal Pradesh